Wednesday, 26 November 2014
gau raksha dal ludhiana gau sewak darshan rana
ये है भारत के मिसायल बनाने वाले वैज्ञानिको के साथ काम करने वाले इंजिनियर जो अपने काम के बाद बचे समय में गौ-सेवा के कार्य में जुड़ना चाहते है . सर्वदलीय गौरक्षा मंच के साथ मिलकर अपनी भारत भूमि का कर्ज चुकाना चाहते है . >>>
हमने जलाये थे कुछ दीपक माटी के, गौ-माता की राह से अँधेरे मिटाने ।
कुछ क्षणों में ही बुझ गए,कुछ हमारी नजर हटते ही किसी ने बुझा दिए।
थोड़ी देर में ''कालनेमि'' आंधी-तूफान आई,गांधी बनकर बड़ा उत्पात मचाई।
गौ-माता के भक्त दीपक अपने को बचा लिए, पर उनमे से कुछ दिशाहीन दीपक आंधी के संग चल दिए।
माँ भारती धन्य तेरी माटि फिर नए दीपक जलाया हूँ, तूने सिर्फ माटी दी थी पर अब ये मेरे दिये है।
आज कालनेमी और गौ+बर्धन का ठग एकसाथ दिखा, ये दोनों मिलकर दीपक बुझाते फिर नजर आये है।
ग्वालो का रखवाला तू ठाकुर है तो, उसी ठाकुर कुल में जन्म ले इनका नमो-निशान मिटने मैं भी आया हूँ।
''नयाल सनातनी'' राष्ट्रिय अध्यक्ष ;--सर्वदलीय गौरक्षा दल लुधियाना पंजाब दर्शन राणा
कुछ क्षणों में ही बुझ गए,कुछ हमारी नजर हटते ही किसी ने बुझा दिए।
थोड़ी देर में ''कालनेमि'' आंधी-तूफान आई,गांधी बनकर बड़ा उत्पात मचाई।
गौ-माता के भक्त दीपक अपने को बचा लिए, पर उनमे से कुछ दिशाहीन दीपक आंधी के संग चल दिए।
माँ भारती धन्य तेरी माटि फिर नए दीपक जलाया हूँ, तूने सिर्फ माटी दी थी पर अब ये मेरे दिये है।
आज कालनेमी और गौ+बर्धन का ठग एकसाथ दिखा, ये दोनों मिलकर दीपक बुझाते फिर नजर आये है।
ग्वालो का रखवाला तू ठाकुर है तो, उसी ठाकुर कुल में जन्म ले इनका नमो-निशान मिटने मैं भी आया हूँ।
''नयाल सनातनी'' राष्ट्रिय अध्यक्ष ;--सर्वदलीय गौरक्षा दल लुधियाना पंजाब दर्शन राणा
Thursday, 20 November 2014
bagto ka ahkar gau raksha dal ludhiana(Darshan Rana Ludhiana)
श्रीकृष्ण द्वारका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे, निकट ही गरुड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे। तीनों के चेहरे पर दिव्य तेज झलक रहा था। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे प्रभु, आपने त्रेता युग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थीं। क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थीं? द्वारकाधीश समझ गए कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान हो गया है। तभी गरुड़ ने कहा कि भगवान क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है। इधर सुदर्शन चक्र से भी रहा नहीं गया और वह भी कह उठे कि भगवान, मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है। क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है?
भगवान मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और इनका अहंकार नष्ट होने का समय आ गया है। ऐसा सोचकर उन्होंने गरुड़ से कहा कि हे गरुड़! तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। गरुड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए। इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया। मधुसूदन ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो। और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई प्रवेश न करे।
भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गए। गरुड़ ने हनुमान के पास पहुंच कर कहा कि हे वानरश्रेष्ठ! भगवान राम माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। आप मेरे साथ चलें। मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा। हनुमान ने विनयपूर्वक गरुड़ से कहा, आप चलिए, मैं आता हूं। गरुड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा। खैर मैं भगवान के पास चलता हूं। यह सोचकर गरुड़ शीघ्रता से द्वारका की ओर उड़े। पर यह क्या, महल में पहुंचकर गरुड़ देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे हैं। गरुड़ का सिर लज्जा से झुक गया। तभी श्रीराम ने हनुमान से कहा कि पवन पुत्र तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए? क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं? हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुका कर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकाल कर प्रभु के सामने रख दिया। हनुमान ने कहा कि प्रभु आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने रोका था, इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें। भगवान मंद-मंद मुस्कुराने लगे। हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया हे प्रभु! आज आपने माता सीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है।
अब रानी सत्यभामा के अहंकार भंग होने की बारी थी। उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था। रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र व गरुड़ तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था। वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों की आंख से आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए। अद्भुत लीला है प्रभु की। अपने भक्तों के अंहकार को अपने भक्त द्वारा ही दूर किया।
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